Monday, 9 January 2017

यहां लोग पिछले एक साल से पैट्रोल की जगह नारियल तेल से चला रहे हैं गाड़ियां

केरल में कुछ वैज्ञानिक ने हैरतअंगेज कारनामा कर दिखाया है। डीजल इंजन वाले छोटे से ट्रक को पिछले एक साल से वे डीजल की जगह नारियल तेल से चला रहे हैं और उन्होंने इस जैवईंधन को व्यावसायिक करने के लिए केंद्र सरकार से संपर्क किया है। ये वैज्ञानिक कोच्चि के SCMS इंस्टीट्यूट ऑफ बायोसाइंस एंड बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च एंड डेवलपमेंट और SCMS स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी से जुड़े हैं।

वैज्ञानिकों ने कहा कि टाटा ACE ट्रक बनाने वाली कंपनी का दावा है कि यह वाहन एक लीटर डीजल में 16 किलोमीटर का माइलेज देता है, जबकि जैव ईंधन से यह प्रति लीटर 22.5 किलोमीटर का माइलेज दे रहा है। छह वैज्ञानिकों के इस दल का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिक सी.मोहनकुमार ने कहा कि इस वाहन को हमने एक साल पहले खरीदा था। अब तक यह 20 हजार किलोमीटर चल चुका है और इसने साबित कर दिखाया है कि नारियल तेल डीजल की जगह ले सकता है।

मोहनकुमार ने कहा कि अमेरिकी पेटेंट के लिए उन्होंने पहले ही आवेदन कर रखा है साथ ही जैव ईंधन के रूप में इसका व्यवसायीकरण करने के लिए केंद्र सरकार से भी संपर्क किया है। उन्होंने कहा कि जैव डीजल के अन्य रूपों की तुलना में इससे उत्सर्जन काफी कम होता है, जो प्रकृति के अनुकूल है। प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि 10 हजार लीटर नारियल तेल से 760 लीटर जैव ईंधन तैयार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ईंधन बनाने के दौरान पांच गौण उत्पादों का भी निर्माण होता है।
इसमें पांच हजार किलोग्राम भूसी, 2500 किलोग्राम नारियल का छिलका, 1250 किलोग्राम नारियल पानी और लगभग 1200 किलोग्राम केक और 70 लीटर ग्लिसरॉल शामिल है।
मोहनकुमार ने कहा कि प्रत्येक गौण उत्पाद की बिक्री हो सकती है, जिसके बाद हम इस जैवईंधन को 40 रुपए प्रतिलीटर की दर से बेच सकते हैं। नारियल विकास समिति (CDB) के अध्यक्ष Y.K.जोस ने कहा कि उन्होंने वाहन के प्रदर्शन का अध्ययन किया है जिसका इस्तेमाल वैज्ञानिक कर रहे हैं। जोस ने कहा कि उनके इस नए अविष्कार को आगे ले जाने के लिए हमारे (CDB) के पास फंड नहीं है और इसी कारण से उन्होंने केंद्र सरकार से संपर्क किया है।

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