डेटा ट्रांसफर के लिए दुनिया भर में ज्यादातर लोग वाईफाई का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अब एक ऐसी तकनीक आ गई है, जो वाईफाई से सौ गुना तेज होगी। इसे बनाने वाले भारतीय हैं। लाईफाई की रफ्तार गीगा बाइट प्रति सेकेण्ड होगी।
लाईफाई बनाने वाले हिन्दुस्तानी
स्टार्टअप कंपनी वेलमेनी के सह संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) दीपक सोलंकी बताते हैं कि उनकी कंपनी एस्तोनिया में पंजीकृत है। उन्होंने लाईफाई तकनीक का प्रायोगिक परीक्षण एस्तोनिया के टालिन में किया है। दीपक कहते हैं कि लाईफाई तकनीक तीन से चार साल में आम आदमी की पहुंच में होगी।
दीपक की कंपनी के सभी कर्मचारी भारतीय हैं। लेकिन इस तकनीक के लिए उन्हें भारत में कोई निवेशक नहीं मिला। दीपक कहते हैं, ‘भारत में किसी को भी इस तकनीक के सच होने पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।’ बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक यह तकनीक कॉल ड्रॉप जैसी समस्याओं के लिए रामबाण साबित हो सकती है। दीपक बताते हैं कि लाईफाई चलाने के लिए आपको बस बिजली का एक स्रोत जैसे एलईडी बल्ब, इंटरनेट कनेक्शन और एक फोटो डिटेक्टर चाहिए।
आप सोच रहे होंगे की एक बल्ब के जरिए वाईफाई से सौ गुना तेज डाटा ट्रांसफर कैसे संभव है। दीपक बताते हैं, ‘सैद्धांतिक तौर पर यह रफ़्तार 224 गीगाबिट प्रति सेकेंड तक हो सकती है।’ दीपक ने लाईफाई का परीक्षण एक ऑफिस में किया ताकि लोग इंटरनेट चला सके। फिर इसे एक औद्योगिक इलाके में भी इसका परीक्षण हुआ, जहां इसने स्मार्ट लाइटिंग साल्यूशन मुहैया कराया।
दीपक सोलंकी, स्टार्टअप वेलमेनी के सीईओ
अपने परीक्षणों में दीपक की कंपनी वेलमेनी ने एक गीगाबाइट प्रति सेकेण्ड की रफ्तार से डेटा भेजने के लिए एक लाई-फ़ाई बल्ब का इस्तेमाल किया था। दीपक का कहना है कि उनकी इस तकनीक को मोबाइल में एक डिवाइस लगाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन भविष्य में यह डिवाइस हर मोबाइल में लगी मिलेगी।
जहां रेडियो तरंगों के लिए स्पेक्ट्रम की सीमा है, वहीं विज़िबल लाइट स्पेक्ट्रम 10,000 गुना ज़्यादा व्यापक है। इसका मतलब यह है कि इसकी निकट भविष्य में खत्म होने की संभावना नहीं है। इसमें सूचना को लाइट पल्सेज़ में इनकोड किया जा सकता है। यह वैसा ही है जैसे रिमोट कंट्रोल में होता है।
लाई-फ़ाई शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले एडिनबरा विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर हेराल्ड हास ने किया था। उन्होंने साल 2011 में टैड (टेक्नोलॉजी, एंटरटेनमेंट एंड डिजाइन) कांफ्रेंस में इसका प्रदर्शन किया था। उन्होंने एलईडी बल्ब से वीडियो भेजकर दिखाया था। प्रोफ़ेसर हेराल्ड हास की प्रस्तुति को क़रीब 20 लाख बार देखा जा चुका है।
वैसे वाईफाई से इतर लाईफाई के कुछ चुनिंदा फायदे और नुकसान भी हैं। वाईफ़ाई की तरह लाईफाई दूसरे रेडियो सिग्नल में खलल नहीं डालता। इसी वजह से लाईफाई का इस्तेमाल विमानों और दूसरे ऐसे स्थानों पर किया जा सकता है। संकरे शहरी इलाक़ों या अस्पताल जैसी जगहों पर जहां वाई-फ़ाई सुरक्षित नहीं है, वहां लाईफाई का इस्तेमाल बिना किसी परेशानी के हो सकता है।
बात लाईफाई की मुश्किलों की करें तो यह धूप में काम नहीं कर पाता। सूरज की किरणें इसके सिग्नल में दखल देती हैं। यह तकनीक वाईफाई की तरह किसी दीवार के उस पार डेटा ट्रांसफर नहीं कर सकती।
लाईफाई बनाने वाले हिन्दुस्तानी
स्टार्टअप कंपनी वेलमेनी के सह संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) दीपक सोलंकी बताते हैं कि उनकी कंपनी एस्तोनिया में पंजीकृत है। उन्होंने लाईफाई तकनीक का प्रायोगिक परीक्षण एस्तोनिया के टालिन में किया है। दीपक कहते हैं कि लाईफाई तकनीक तीन से चार साल में आम आदमी की पहुंच में होगी।
दीपक की कंपनी के सभी कर्मचारी भारतीय हैं। लेकिन इस तकनीक के लिए उन्हें भारत में कोई निवेशक नहीं मिला। दीपक कहते हैं, ‘भारत में किसी को भी इस तकनीक के सच होने पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।’ बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक यह तकनीक कॉल ड्रॉप जैसी समस्याओं के लिए रामबाण साबित हो सकती है। दीपक बताते हैं कि लाईफाई चलाने के लिए आपको बस बिजली का एक स्रोत जैसे एलईडी बल्ब, इंटरनेट कनेक्शन और एक फोटो डिटेक्टर चाहिए।
आप सोच रहे होंगे की एक बल्ब के जरिए वाईफाई से सौ गुना तेज डाटा ट्रांसफर कैसे संभव है। दीपक बताते हैं, ‘सैद्धांतिक तौर पर यह रफ़्तार 224 गीगाबिट प्रति सेकेंड तक हो सकती है।’ दीपक ने लाईफाई का परीक्षण एक ऑफिस में किया ताकि लोग इंटरनेट चला सके। फिर इसे एक औद्योगिक इलाके में भी इसका परीक्षण हुआ, जहां इसने स्मार्ट लाइटिंग साल्यूशन मुहैया कराया।
दीपक सोलंकी, स्टार्टअप वेलमेनी के सीईओ
अपने परीक्षणों में दीपक की कंपनी वेलमेनी ने एक गीगाबाइट प्रति सेकेण्ड की रफ्तार से डेटा भेजने के लिए एक लाई-फ़ाई बल्ब का इस्तेमाल किया था। दीपक का कहना है कि उनकी इस तकनीक को मोबाइल में एक डिवाइस लगाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन भविष्य में यह डिवाइस हर मोबाइल में लगी मिलेगी।
जहां रेडियो तरंगों के लिए स्पेक्ट्रम की सीमा है, वहीं विज़िबल लाइट स्पेक्ट्रम 10,000 गुना ज़्यादा व्यापक है। इसका मतलब यह है कि इसकी निकट भविष्य में खत्म होने की संभावना नहीं है। इसमें सूचना को लाइट पल्सेज़ में इनकोड किया जा सकता है। यह वैसा ही है जैसे रिमोट कंट्रोल में होता है।
लाई-फ़ाई शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले एडिनबरा विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर हेराल्ड हास ने किया था। उन्होंने साल 2011 में टैड (टेक्नोलॉजी, एंटरटेनमेंट एंड डिजाइन) कांफ्रेंस में इसका प्रदर्शन किया था। उन्होंने एलईडी बल्ब से वीडियो भेजकर दिखाया था। प्रोफ़ेसर हेराल्ड हास की प्रस्तुति को क़रीब 20 लाख बार देखा जा चुका है।
वैसे वाईफाई से इतर लाईफाई के कुछ चुनिंदा फायदे और नुकसान भी हैं। वाईफ़ाई की तरह लाईफाई दूसरे रेडियो सिग्नल में खलल नहीं डालता। इसी वजह से लाईफाई का इस्तेमाल विमानों और दूसरे ऐसे स्थानों पर किया जा सकता है। संकरे शहरी इलाक़ों या अस्पताल जैसी जगहों पर जहां वाई-फ़ाई सुरक्षित नहीं है, वहां लाईफाई का इस्तेमाल बिना किसी परेशानी के हो सकता है।
बात लाईफाई की मुश्किलों की करें तो यह धूप में काम नहीं कर पाता। सूरज की किरणें इसके सिग्नल में दखल देती हैं। यह तकनीक वाईफाई की तरह किसी दीवार के उस पार डेटा ट्रांसफर नहीं कर सकती।
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